Friday, June 26, 2009

सुरों के बादशाह को हमारा नमन

सुरों के बादशाह माइकल जैक्शन के अंतिम सांस लेने के साथ ही एक म्युजिक वल्र्ड का एक युग समाप्त हो जाने जैसा एहसास करा रहा है. सेक्स परिवर्तन या फिर प्लास्टिक सर्जरी के चलते लोगों की जुबान पर रहने वाले जैक्शन हरकत चाहे ग्लैमर वल्र्ड में अपनी पहचान बनाए रखने के लिए ऐसा करते हों या फिर म्युजिक लवर्स को अपनी ओर अट्रैक्ट करने के मकसद से, याद तो उनके गीत संगीत ही आते थे. उनके सांग्स ने दिल में जगह बनाई तो हाई-फाई लाइफ स्टाइल जीने वालों को एक ट्रेंड भी दे गए हैं. 11 साल की उम्र में जैक्सन फाइव के सदस्य के रूप में प्रोफेशनल म्युजिक ज्वाइन करने वाले जैक्शन ने एक ऐसा प्लेटफार्म तैयार किया जो किसी भी नवोदित कलाकार के लिए सपने जैसा होता है. बाल यौन शोषण जैसा आरोपों से घिरने वाले जैक्शन ने धर्म परिवर्तन करके भी चर्चाएं बटोरीं. जैक्सन उन सेलेक्टेड कलाकारों में से एक थे जिन्हें दो बार राक एंड रोल हाल ऑफ फेम में जगह मिली थी. ग्रीनिज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में कई बार उनका नाम शामिल होना स्वत: ही उनकी हाइट डिसाइड कर देता है. 13 ग्रैमी पुरस्कार और दुनियाभर में उनके संगीत एलबमां की 75 करोड़ से अधिक प्रतियों का बिकना शामिल है. जैक्शन के अंतिम सांस लेने से संगीत प्रेमी दु:खी हैं. शायद मैं भी क्योंकि विवाद भले ही कुछ भी होते रहे हों जैक्शन ने म्युजिक को तो एक नया मुकाम दिया ही था. इस फील्ड में उनका इनोवेशन और क्रिएशन किसी का भी ध्यान अपनी ओर खींचता है, बताता है कि प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती बस करने का जज्बा होना चाहिए. गीत संगीत के इस मुखिया को मेरा आखिरी नमन...

Monday, May 4, 2009

पहले तो मुझ पर इतराना
प्यार नहीं था तो क्या था
फिर तेरी आंखें भर aanaa
pyaar नहीं था तो क्या था...
केवल एक वरदान मिला था
उसमें मांग लिया तुझको
हर कीमत पर उसको पाना
प्यार नहीं था, तो क्या था...
जब-जब दान किया यह मांगा
इसका पुण्य मिले तुझको
दिल का दिल को ये नजराना
प्यार नहीं था तो क्या था...
दिल बोला मैं आऊं
तन समझाये मत जाना
इस दुविधा का बोझ उठाना
प्यार नहीं था तो क्या था

ईजी और बिजी लाइफ

ईजी और बिजी लाइफ. आपको पता है इन दोनों वड्र्स के अर्थ में क्या रिलेशन और क्या डिफरेंश है? शायद कुछ इस तरह से डिफाइन करेंगे न कि रिलेशन यह कि दोनों की वर्ड किसी एक पर्सन की लाइफ का पार्ट हैं और डिफरेंस यह कि दोनों एक-दूसरे के अपोजिट हैं. एक और रिलेशन है दोनों में, बिजी रहकर भी ईजी रहा जा सकता है और यह रुटीन का पार्ट बन जाय तो लाइफ के क्रिएटिव पार्ट को और स्ट्रांग बनाया जा सकता है, आज के फास्ट लाइफ स्टाइल की रिक्वॉयरमेंट है.मैं जानता हूं संडे के दिन सीरियस बात करना किसी को पसंद नहीं होता. फिर भी मैं इसे मैने सब्जेक्ट सेलेक्ट क्यों किया, इसके पीछे इंट्रेस्टिंग स्टोरी है. एक्चुअली मुझे संडे के लिए एक आर्टिकिल लिखना था, जो लाइट मूड भी हो और पढऩे पर बोरियत भी न हो. मैं सब्जेक्ट तलाशने के लिए दिमाग दौड़ाने में बिजी था. बिजी होकर भी ईजी कैसे रहा जाता है, इस आर्ट ऑफ लिविंग से मैं वाकिफ नहीं था तो पिछले दो-तीन दिनों से टेंशन में था. इसी दौरान मिलने आए एक फ्रेंड ने सिटी में चल रहे फेयर में चलने का प्रपोजल रख दिया. मैं बोला यार मैं पहले से ही टेंशन में हूं और तूं फेयर में घूमने की बात कर रहा है. टेंशन में होने का कारण भी उसे बता दिया, फिर भी वह नहीं माना और मुझे अपने साथ ले गया.फ्रेंड के प्रेशर में मैं घूमने के लिए तो निकल गया पर दिमाग में 'सब्जेक्ट' ही घूमता रहा. फेयर में जिस किसी भी स्टाल पर पहुंचा और आर्गेनाइजर से बात की दिमाग सब्जेक्ट तलाशने में जुट रहा. करीब एक घंटा बिताने के बाद हम दोनों आफिस लौट आए लेकिन सब्जेक्ट नहीं मिला. घूमने के बाद भी मुझे ईजी फील न करते देखकर फ्रेंड बोला अब तो सब्जेक्ट मिल गया है फिर क्यों टेंशन में है? मैं चौंका और पूछ बैठा आखिर है क्या सब्जेक्ट? उसने कहा ईजी और बिजी. सब्जेक्ट तो मुझे जंच गया पर इसे एस्टेब्लिश कैसे करुंगा? इस पर फंस गया.फ्रेंड ने एक बार फिर से साथ दिया और बोला बिजी को ईजी में कन्वर्ट करो, हो जाएगी प्राब्लम साल्व. उसने कहा, तुम्हें क्या लगता है फेयर आर्गेनाइज करने वाले बिजी नहीं हैं? यहां स्टाल लगाने वाले बिजी नहीं हंै? या फिर फेयर में आने वाले लोग बिजी नहीं हैं? इसके बाद भी सब एंज्वॉय कर रहे थे क्योंकि आज छुट्टी का दिन है. बिजी इसलिए हैं क्योंकि प्रोफेशनल रिक्वॉयरमेंट है और ईजी रहकर एंज्वॉय इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वे अपना दिन खराब नहीं करना चाहते. इसे थोड़ा और क्लीयर करने के लिए उसने मुझे रियलिटी शोज के बारे में बताया. पूछा इसमें जजेज का क्या रोल होता है? मैंने कहा परफार्मेंस को जज करना. उसने कहा उनका रोल परफार्मर के एक-एक स्टेप को मॉनीटर करना होता है फिर भी वे ईजी रहते हैं. फिर उसने पूछा आफिस में तुम्हारा क्या रोल है? मैने जवाब दिया कलीग्स की वर्किंग को जज करना. उसने कहा जब रियलिटी शो हो या फिर कुछ और. कुछ नहीं तो हर कोई अपने आप में तो बिजी है ही. फिर भी सब ईजी रहते हैं क्योंकि ऐसा नहीं होने पर उनकी क्रिएटिविटी खत्म हो जाएगी. फिर तुम क्यों टेंशन मोल लेते हो. इससे तो दिमाग में कोई नया आइडिया ही नहीं आएगा.फ्रेंड की इन बातों से मुझे एहसास हुआ कि मैं क्या कर रहा था. मैने आज अपनी लाइफ का एक इंपार्टेंट डे कैसे मिस कर दिया. यह आइडिया मेरे दिमाग में क्यों नहीं आया कि ईजी और बिजी भी सब्जेक्ट हो सकता है. वैसे यह सवाल हर किसी के लिए बड़ा है. बिजी तो अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा से लेकर हमारे ऑफिस में काम करने वाला रिपोर्टर तक है. हो सकता है टेंश भी हो पर इस कारण के चलते ओबामा ने न तो दुनिया से मुंह मोड़ा है और न मेरे कलीग्स ने जो रोज सुबह डिफरेंट स्टोरी आइडियाज के साथ आफिस में आता है. अब मुझे लगने लगा है सिर्फ सोच का फर्क है. सोच को बिजी करके कभी भी ईजी नहीं रहा जा सकता और ईजी रहकर भी बिजी रहा जा सकता है. सिर्फ बिजी रखने से टेंशन बढ़ेगा और ईजी रहकर बिजी रखने से काम को एंज्वॉय करने का मौका मिलेगा. ईजी रहने पर नए आइडियाज दिमाग में आएंगे या फिर पुराने आइडिया को और एक्सप्लोर करने का मौका मिलेगा तो बिजी रहकर टेंशन मोल लेने पर दिमाग ही ब्लाक हो जाएगा और पॉसिबल है सोचा हुआ भी दिमाग से मिस हो जाए. फ्रेंड के फंडे से मैं रिलैक्श फील करने लगा हूं और मेरा आर्टिकिल भी पूरा हो गया है.

Parenting ke bahane

आप अपने ब'चे के साथ कितना टाइम स्पेंड करते हैं? क्या आप अपने ब'चे के पॉजिटिव और निगेटिव क्वालिटीज से फेमिलियर हैं? ब'चे के निगेटिव प्वाइंट्स को जानने के बाद आपने क्या किया? ब'चे की डेली रुटीन कैसी होने चाहिए? आज का एजूकेशन सिस्टम कैसा होना चाहिए? क्या आप जानते हैं ब'चे को पाला कैसे जाता है? किस एज ग्रुप में उन्हें कैसे हैंडिल किया जाता है? अटपटे से लगते हैं न ये सवाल. अब थोड़ा फ्लैश बैक में चलते हैं. मेगा स्टार अमिताभ ब'चन, जयप्रदा और प्राण की सुपरहिट मूवी 'शराबी' याद है. इन सवालों का जवाब देती है यह मूवी जहां सही पेरेंटिंग नहीं होने से तमाम फेसिलिटी के बीच एक युवा रास्ते से भटक कर ऐसे रास्ते पर चल पड़ता है जो उसे पिता से ही अलग कर देता है. पिछले दिनो एक और मूवी आई थी 'ओम जय जगदीश' जहां पिता के न होने के बाद भी मां से मिले संस्कारों (पेरेंटिंग) ने तीन भाइयों को इस तरह से बांधा कि वे बड़े भाई को ही सब कुछ मानने लगे. निकलते हैं फ्लैश बैक से क्योंकि ये सवाल अब हर पेरेंट्स के लिए इंपार्टेंट हो गए हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्कूलों में पेरेंट्स का इंटरव्यू तो बंद कर दिया गया है लेकिन पैरेंटिंग के बहाने इन सवालों का पूछा जाना बहुत ही कामन है. इन सवालों को फेस करना किसी चैलेंज से कम नहीं है क्योंकि आम तौर पर इसे होम डिपार्टमेंट ही डील करता है. इसका सॉल्यूशन जानने के लिए मैं मिला पैरेंटिंग एक्सपर्ट से. उन्होंने भी पहले मेरे से ढेर सारे सवाल किए. मसलन, आपका ब'चा कितने टाइम तक टीवी देखता है? टीवी पर वह क्या देख रहा है, इसे भी कभी मॉनीटर किया है? उसका सोने और उठने का शिड्यूल क्या है? आप उसे दिन में कितनी बार गले से लगाते हैं? क्या उसे बैठने, उठने, बात करने को लेकर टोकते या डांटते हैं? उसके जीवन में अनुशासन कितना इंपार्टेंट है. इन सवालों का मैंने जो जवाब दिया उससे पता चला कि मैं तो खुद ही अपने ब'चे के बिगडऩे का रास्ता बना रहा हूं? याद आ गया बड़े भाई का बेटा जो उनके लिए टेंशन बन गया है. जो उनकी कोई बात नहीं मानता और किसी बात पर डांटने पर कहता है कि पिटाई करेंगे न व भी कर लीजिए और क्या कर सकते हैं. घर से तो निकालेंगे नहीं. एक्सपर्ट ने कहा बपचन ब'चे की नींव पडऩे का समय होता है, इस समय पैरेंटिंग में चूक हो गई तो फिर पछताने के सिवा कुछ नहीं रहेगा. उन्होंने बताया ब'चा तो पांच साल का होते-होते एबीसीडी, क ख ग घ के साथ ही नंबर काउंटिंग भी सीख ही लेगा. लेकिन उसके आसपास चलने वाली चीजों का सीधा रिलेशन फ्यूचर से जुड़ा है. सबसे बड़ी बात खुद अनुशासित बनें और ब'चे को भी अनुशासित बनावें. उसके सोने-जागने का टाइम फिक्स करें. पढऩे और खेलने का टाइम फिक्स करें. सिक्युरिटी रीजंस के चलते घर से निकलना बंद कराकर वीडियो गेम खेलने की आदत डालना उसकी बॉडी ग्रोथ के साथ ही पर्सनॉलिटी ग्रोथ के लिए भी हानिकारक है. इसलिए उसे ग्रुप में खेलने का इंतजाम तो हर हाल में किया ही जाना चाहिए और इन सब से ऊपर है उनके पास टाइम पास करना. उनकी बातों को सुनना और समझना और उन्हें जादू की झप्पी देना. इसका सबसे ज्यादा पॉजिटिव एफेक्ट ब'चे पर पड़ता है और इससे कम्युनिकेशन गैप भी नहीं होता. ब'चा स्कूल के एक्सपीरिएंस से लेकर फ्रेंड्स से होने वाली बातचीत तक आपसे शेयर करे, यह निहायत जरूरी है. इससे उसकी सोच का पता चलेगा. एक्सपर्ट के साल्यूशन ने मुझे चौकन्ना कर दिया. मुझे एहसास होने लगा चार सालों के दौरान मैंने क्या खो दिया है और उसे कैसे पाना है. सच बताऊं, अंदर तक डर गया था. मैंने इन सारी बातों को अपनी वाइफ से शेयर किया तो उसका भी जवाब था कि हम तो सिर्फ ब'चा हंसता-खेलता आंखों के सामने रहे, इसी पर फोकस करते हैं. साल के महीनों का नाम नहीं बताने पर डांटते हैं. माई नेम इज... बताने पर खुश तो होते हैं, कभी-कभी जादू की झप्पी भी देते हैं लेकिन यह रेग्युलर हैबिट में नहीं है. यह मत करो, वह मत करो, यहां मत जाओ, वहां मत खेलो, यह तो शायद ब'चे के लिए निकलने वाले हर लाइन के साथ जुड़ा होता है. मुझे एहसास हो गया हम कितने गलत हैं और ब'चे को पालना कितना कठिन. लेकिन, मैंने नसीहत भी ले ली है, ब'चे का कोई भी मामला इग्नोर नहीं करुंगा. मैं जानता हूं उसे न डांटने का संकल्प लेना कितना कठिन है क्योंकि अपना फ्रस्टेशन तो आम तौर मैं या तो वाइफ या फिर ब'चे पर उतारता हूं. आप क्या करते हैं? अ'छा है, यदि आप अपने को संभाल चुके हैं, नहीं तो ध्यान जरूर दें क्योंकि ब'चा तो आपका ही है और फ्यूचर भी.

कहां जा रहे हैं हम

2 मई की बात है. सिटी में एक केस सामने आया. एक पेयर चार साल तक लिव इन रिलेशन में पति-पत्नी की तरह रहा. दोनों एक ही कंपनी में काम करते थे. वेस्टर्न एल्चर से प्रभावित होकर यह कदम उठाने वाली लड़की रिश्ता टूटने का समय आया तो भारतीय परम्परा से जुड़ गई और राजीव नाम के इस लड़के को छोड़कर किसी को अपना जीवनसाथी मानने के लिए तैयार नहीं थी. लड़के ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उसने दो बार जान देने की कोशिश की. अब वह जीवन और मौत के बीच संघर्ष कर रही है. आधुनिकता के नाम पर तेजी से वेस्टर्न कल्चर को एडाप्ट करने का इससे बड़ा कोई और उदाहरण शायद हो भी नहीं सकता है. इस घटनाक्रम से दो फैक्ट उभरकर सामने आए हैं. एक, हम अधकचरी संस्कृति को मानने में विश्वास करने लगे हैं और दूसरा हमारा मै'योरिटी लेवल कहां जा पहुंचा है. अधकचरी संस्कृति इसलिए क्योंकि वेस्टर्न कंट्रीज में लिव इन रिलेशनशिप में रहने को कैजुअली ही लिया जाता है. शायद यही कारण है कि वहां तलाक का ग्राफ तेजी से ऊपर उठाता हुआ दिखाई देता है. इसे वहां सीरियसली लिया भी नहीं जाता है. हमारे यहां वैवाहिक मशीनरी तमाम झंझावातों को झेलने के बाद भी काफी स्ट्रंाग पोजीशन में है. यही कारण है कि एक बार वैवाहिक बंधन में बंधने के बाद सोसाइटी के चलते कोई भी कपल रिश्ता तोडऩे से पहले सैकड़ों बार सोचता है. वैवाहिक मशीनरी न सिर्फ लड़की-लड़की बल्कि दोनों के पूरे फैमिली रिलेशन को भी बताती है. दोनों पक्षों को पूरी आजादी होती है कि वे एक-दूसरे के बारे में पूरा पता लगा लें. इसी का नतीजा होता है कि रिश्तों में खटास का असर सिर्फ दो व्यक्तियों पर नहीं पड़ता बल्कि उसका असर काफी दूर तक जाता है. लिव इन रिलेशनशिप की घटना यहां एक सवाल और खड़ा करती है कि पेरेंट के रूप में हमारी भूमिका कितनी संकुचित हो गई है. बेटा हो या फिर बेटी. किसी अजनबी के साथ चार सालों से रही और पेरेंट्स को इसका पता भी नहीं चला. क्यों? क्या हम अपने आप में इतने बिजी हो गए हैं कि ब''ो क्या कर रहे हैं, इसका पता लगाना भी जरूरी नहीं समझते? और यदि समझा तो क्या किया. शायद कुछ नहीं. क्योंकि कुछ किया होता तो शायद यह दिन देखने की नौबत ही नहीं आती. ऐसा इसलिए क्योंकि लड़की ने जैसा बताया उसके मुताबिक उसके माता और पिता दोनों लाइव हैं और उसका घर से भी रिश्ता बना हुआ है. उसने यह भी कहा कि वह मुंबई तक राजीव से मिलने अकेले ही गई थी तब उसे पता चला कि राजीव अब उससे कोई संबंध नहीं रखना चाहता. यह तब था जबकि लड़की का चार बार एबार्सन कराया गया और हर बार डॉक्टर के यहां सिग्नेचर राजीव का ही था. इतना सब कुछ हो गया और मां-बाप को पता नहीं चला? हो सकता है, यह संभव हो पर सोचने में ऐसा पॉसिबल नहीं लगता क्योंकि लड़के के मामले में हम भले ही थोड़े लापरवाह हो गए हों, लड़की के बारे में तो ऐसा नहीं ही सोचते. यहां समस्या यह भी है कि हम दो संस्कृतियों के बीच आखिर फंस क्यों रहे हैं. आधुनिकता पर मुझे कोई एतराज नहीं है लेकिन आधुनिकता के नाम पर ऐसी घटनाएं थोड़ा कष्टï जरूर दे जाती हैं. यह घटनाक्रम एक और सवाल खड़ा करता है, हमारे मै'योरिटी लेवल पर. हम बदलने की कोशिश तो डे बाई डे की तर्ज पर कर रहे हैं लेकिन इस लेवल की मै'योरिटी हमारे भीतर नहीं है. ऐसा होता तो राजीव के लिए जान देने की कोशिश करने से पहले लड़की हजारों बार सोचती. सोचती तो यह उसके मन में जरूर आता कि उसके इस कदम से उसके पेरेंट््स की सोसाइटी में क्या इज्जत रह जाएगी. हमाम बदलावों के बावजूद आज भी हमारा सोशल सिस्टम काफी स्ट्रांग है और मैं तो इस पर पूरा भरोसा इसलिए भी करता हूं क्योंकि यह हमें रोकता-टोकता तो है. हो सकता है कि मेरी ही सोच सही हो, पर सोशल सिस्टम मुझे गलत सही के बारे में बताता तो है. यदि हम इस सोसल सिस्टम को इग्नोर करने की कोशिश कर रहे हैं तो उसी लेवल की मै'योरिटी भी तो दिखानी चाहिए. मैं यह कतई कहने की कोशिश नहीं कर रहा कि सौ फीसदी लड़की ही गलत है लेकिन 10 परसेंट हिस्सा तो उसके खाते में आता ही है. राजीव ने मौके का फायदा उठाया, इसमें दो राय नहीं है. लेकिन गलती तो लड़की की भी है कि उसने मौका दिया. मै'योर होता तो पहले जीवनसाथी बनाने की बात करती और फिर किसी संबंध पर बात करती.

Friday, February 13, 2009

एक साक के हो गए हम

लास्ट इयर जनवरी मैं हमारा सफर सुरु हुआ था। एक साल बीत चुके है। पाछे मुड़कर देखता हूँ तो लगता है जैसे कल की बात हो। कैसे टाइम बीत गया पता ही नही चला। सायद ख़ुद को एस्ताब्लिश करने मैं वक्त नही रहा वक्त को याद रखने का। ख़ुद को सबसे alag रखने के प्रयास न दिन याद रहा न रात। बस काम काम और काम। हेर दिन कुछ नया करने की चाहत ने हौसला दिया और गलती पर बॉस की माफ़ी ने ऐसा जोश भर दिया था की रोज नया करने की आदत सी पड़ गई। सोच को पंख लगाने का सायद इससे बड़ा कोई प्लेटफोर्म मिलना भी मुस्किल होगा। येही से मिला कोम्पटेशन फस करने का आत्मविश्वास। सोते जागते चलते हेर वक्त कुछ न कुछ दिमाग मैं चलता रहता था। इसमे मेरे फ्रिएंड्स ने भी पुरा साथ दिया। वो गलती बताने के साथ ही मुझे अपने सोच भी बताते थे। आईडिया भी देते थे। जाने अनजाने उनकी बातें मुझे कुछ न कुछ दे ही जाती थी। अलाहाबाद के बाद पटना रांची और आगरा के दौरे ने एक्सपेरिएंस के साथ कांफेदेंस भी भरा। इसके बाद तो मुड़कर देखने काम मन भी नही करता। बस इसी सोच मैं दिन बीत जाता है की आज क्या नया कर सकता हूँ। सुच बतौऊ तो येहे टाइम के पता न चलने काम कारन भी था। फर्स्ट एनिवर्सरी सेलेब्रेट करते समय एक सुखद अहसास मेरे साथ था। नया जोश नई उम्मीद नया भरोसे के साथ मैंने दूसरे साल मैं प्रवेस कर लिया है। उम्मीद है इस बार भी दोस्तियो काम पुरा साथ मिलेगा और अगले साल नई ऊंचाई पर पहुचुन्गा।

Wednesday, February 11, 2009

स्नो फाल का वैलेंटाइन


नेचुरल ब्यूटी ऐसे sazi थे मानो वैलेंटाइन सेलेब्रेट कर रही हो। उसे किसी की परवाह नही थी। हम तो मसूरी गए थे नेचुरल ब्यूटी को एन्जॉय करने। वैलेंटाइन वीक मैं ही यहाँ ऐसा क्यो होता है यह जानने के लिय। यहाँ का नजारा ही कुछ और था। स्नो से घिरी पहेरी। सुब कुछ बर्फ मैं लिपटा वैलेंटाइन डे सेलेब्रेट कर रहा था। किसी की कोई चिंता नही और न ही किसी का खौफ। यहाँ हजरिओं लोग नेचर को एन्जॉय करने के लिय जमा थे। कहने को तो कल किस डे था पैर यहाँ तो वैलेंटाइन का हेर डे सेलेब्रेट करने वाले थे। उमर कोई मायने नही थे। यहाँ जाने का मकसद तो था कुह एक्सक्लूसिव तलास करना पैर लोगिओं का मूड देखकर मेरा भी मूड बदल गया और मैं अपने को रोक नही पाया। यहाँ किसी के पास कोई गम नही था हर फेस पैर मुस्कान थे जो इस रिसेशन के दौर ने छीनली है। हर कोई इस पल को जी लेना चाहता था। क्या बच्चे और जवान ऐसा लगा जैसे किसी के पास कोई काम ही नही है। यह देख कर लगा इससे एक्सक्लूसिव और क्या हो सकता है। यही तो है हमारी वो बात जो हमारी हस्ती को मिटने नही देती। बर्फ से खलते लोग जाम से निकलने की जुगत कुछ भी करने सहने के लिय तैयार लोग। कोई यह भी देखने वाला भी नही की सामने वाला कौन है। यहाँ बेगाने भी अपने थे। सेलेब्रेट करते बर्फ भी सूरज की किरणों को देख कर अपने आप को पिघलने से रोक नही पाती थी। सफ़ेद चादर पैर भला कौन मस्ती नही करना चाहेगा वो भी तब जब की नेचर ख़ुद इसमे सामिल था। हम तो देखकर दंग थे यह सुब कुछ। जौर्नी भी किसी mukable से कम नही थी। हर कोई जल्द से जल्द पहुचाना चाहता था। होड़ मची थे। क्या कार और क्या मोटर साइकिल कोई पीछे नही रहना चाहता था। यहाँ तो सीन किसी दौड़ से कम नही था। हम भी इस दौड़ मैं सामिल थे। यहाँ पहुँच कर लगा जीना तो यही है। और इससे बड़ा वैलेंटाइन सेलेब्रेशन और क्या होगा।